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छठ पूजा का इतिहास ,महत्व और पूजन विधि

छठ पूजा एक प्राचीन और महत्वपूर्ण हिन्दू पर्व है, जो विशेष रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, और नेपाल के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है। यह पूजा सूर्य देवता और उनकी पत्नी उषा (प्रभा) की पूजा है, और इसे खासकर कार्तिक माह (अक्टूबर-नवंबर) के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी और सप्तमी को मनाया जाता है। यह पर्व एक सप्ताह तक चलता है, जिसमें मुख्य दिन छठी (छठ) होती है।


छठ पूजा का इतिहास:

छठ पूजा का इतिहास बहुत प्राचीन माना जाता है। यह पर्व सूर्य देवता और उनकी ऊर्जा की पूजा से जुड़ा हुआ है। कुछ मान्यताओं के अनुसार, छठ पूजा की शुरुआत महाभारत काल से मानी जाती है। जब पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान सूर्य देवता की पूजा की थी, तब से यह परंपरा चली आ रही है।

एक और प्रमुख मान्यता है कि छठ पूजा का संबंध राजा रघु से भी जोड़ा जाता है, जो सूर्य देव के भक्त थे और उन्होंने सूर्य देवता की पूजा से अपनी प्रजा को सुखी और समृद्ध किया। इसके अलावा, एक अन्य मान्यता यह भी है कि यह पूजा प्राचीन काल में एक विशेष दिन के रूप में आयोजित होती थी जब लोग सूर्य के उगने और अस्त होने के समय विशेष रूप से पूजा करते थे, ताकि उनकी उर्जा और आशीर्वाद प्राप्त किया जा सके।

छठ पूजा का महत्व:

1. सूर्य देवता की पूजा:

   छठ पूजा का मुख्य उद्देश्य सूर्य देवता की पूजा करना है, जिन्हें जीवन और ऊर्जा का स्रोत माना जाता है। सूर्य देवता से स्वास्थ्य, समृद्धि, और खुशहाली की कामना की जाती है। पूजा के दौरान, सूर्योदय और सूर्यास्त के समय विशेष पूजा की जाती है, जो सूर्य के प्रति श्रद्धा और आभार व्यक्त करने का तरीका है।

2. परिवार और समाज की भलाई:

   छठ पूजा का महत्व केवल व्यक्तिगत कल्याण के लिए नहीं है, बल्कि यह समाज और परिवार के कल्याण के लिए भी मनाई जाती है। यह पूजा समाज में भाईचारे, प्रेम और एकता का प्रतीक मानी जाती है। परिवार के सदस्य मिलकर यह पूजा करते हैं, जिससे रिश्तों में गहराई और प्रेम बढ़ता है।

3. स्वास्थ्य और जीवन की लंबाई:

   छठ पूजा को जीवन के स्वास्थ्य और लंबाई की कामना से भी जोड़ा जाता है। विशेष रूप से, महिलाएं इस पूजा में भाग लेती हैं और यह माना जाता है कि इस पूजा के माध्यम से वे अपने परिवार की खुशहाली और बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।

4. प्राकृतिक तत्वों के साथ जुड़ाव:

   छठ पूजा में सूर्य के साथ-साथ जल, पृथ्वी, और आकाश के तत्वों की पूजा की जाती है। भक्त विशेष रूप से नदी, तालाब या अन्य जल स्रोतों में स्नान करते हैं और वहां सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। यह प्राकृतिक तत्वों के प्रति सम्मान और उनके महत्व को दर्शाता है।

छठ पूजा की प्रक्रिया:

1. नहाय खाय (पहला दिन):

   छठ पूजा की शुरुआत "नहाय खाय" से होती है। इस दिन, भक्त शुद्धता के लिए स्नान करते हैं और विशेष रूप से शाकाहारी भोजन खाते हैं, जिसमें लौकी, और कद्दू प्रमुख होते हैं।

2. खरना (दूसरा दिन): 

   दूसरे दिन को खरना कहा जाता है, जिसमें दिनभर उपवासी रहकर शाम को गुड़, चावल बने पकवान खाते हैं। इस दिन को मुख्य रूप से व्रति अपने परिवार के साथ मिलकर पूजा करती हैं।

3. संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन): 

   तीसरे दिन, सूर्यास्त के समय पूजा की जाती है, जिसमें भक्त सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। इस समय भक्त नदी या तालाब के किनारे एकत्र होते हैं और सूर्यास्त से पहले व्रति सूर्य को अर्घ्य देते हैं।

4. उषा अर्घ्य (चौथा दिन):

   चौथे दिन, उषा (सूर्योदय) के समय सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित किया जाता है। यह दिन पूजा का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है, और इसे पूरा करने के बाद व्रति अपना व्रत समाप्त करते हैं।

 

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Author & Editor

Tinku Kumar Choudhary.

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